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25 Feb 2018 · 1 min read

ससुराल में पहली होली

खूब याद आती है अब भी पहली होली
पहुँचे जब ससुराल मनाने को हम होली
पत्नी मैके गई हुई थी, मन आतुर था
होली पर पत्नी सँग होगी खूब ठिठोली

लेकिन थे तैयार उधर भी साले साली
दरवाजे पर ही मेरे कालिख मल डाली
भरी बाल्टी रंग डाल कर तर कर डाला
जैसे तैसे अंदर घुसकर श्वास सँभाली

उधर रंग से भिगो रही थी हमको साली
इधर सलहजें लिए खड़ी रंगों की थाली
सास खिलाने को आतुर थीं गुझिया रबड़ी
मन फिर भी बेचैन कहाँ है अपनी वाली

आखिरकार ससुर साहब ने बात सँभाली
भीग गए हैं लाला, बंद करो अब होली
अंदर जाकर रंग छुड़ा लो और नहा लो
तुरत फुरत हमने भीतर की राह टटोली

रंग छुड़ाने लगे तभी आई घरवाली
रंग लगा हौले से बोली हैपी होली
पकड़ उन्हें हमने भी उनको तर कर डाला
अंतरतम तक रँगा मनी यों पहली होली

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद

Language: Hindi
610 Views
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