ससुराल में पहली होली
खूब याद आती है अब भी पहली होली
पहुँचे जब ससुराल मनाने को हम होली
पत्नी मैके गई हुई थी, मन आतुर था
होली पर पत्नी सँग होगी खूब ठिठोली
लेकिन थे तैयार उधर भी साले साली
दरवाजे पर ही मेरे कालिख मल डाली
भरी बाल्टी रंग डाल कर तर कर डाला
जैसे तैसे अंदर घुसकर श्वास सँभाली
उधर रंग से भिगो रही थी हमको साली
इधर सलहजें लिए खड़ी रंगों की थाली
सास खिलाने को आतुर थीं गुझिया रबड़ी
मन फिर भी बेचैन कहाँ है अपनी वाली
आखिरकार ससुर साहब ने बात सँभाली
भीग गए हैं लाला, बंद करो अब होली
अंदर जाकर रंग छुड़ा लो और नहा लो
तुरत फुरत हमने भीतर की राह टटोली
रंग छुड़ाने लगे तभी आई घरवाली
रंग लगा हौले से बोली हैपी होली
पकड़ उन्हें हमने भी उनको तर कर डाला
अंतरतम तक रँगा मनी यों पहली होली
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद