‘सशक्त नारी’
रानी की तलवार वार से,
रिपुदल के गए छक्के छूट ।
रण-भूमि पर गिर निष्प्राण हुए,
कितनों के भाले गए टूट ।।
मुग्ल सेना के खट्टे दाँत हुए,
करती दुर्गा तीर बौछार।
अकबर सेना घेर उठी तो,
निज वक्ष पर घौंप दी कटार।।
सावित्री से काल भ्रमित हुए,
मति से फेंका ऐसा तीर।
बिना अस्त्र शस्त्र उपयोग किए,
मिटा गई निज जीवन पीर।।
चंडी बन रण में जब उतरी,
सृष्टा विचलित हो जाग उठे।
माँ की क्रोधाग्नि की भभक से,
त्रिलोकी नाथ भी काँप उठे।।
देखा अपमान स्वामी का अपने,
सती मन जगी क्रोध की आग।
निष्फल किया यज्ञ पिता का,
प्राण मोह का करके त्याग।।
देव भूमि की वीर सुता से,
कत्यूरी सैनिक गए थे हार।
तात भ्रातृ बलि हुए समर में,
चली हाथ में ले तलवार।।
शिखरों पर लहरा रही ध्वजा,
नभ में उड़ाती वायुयान।
कुदृष्टि उसपर डाली जिसने,
पांचाली बन हर ले प्रान ।।
अबला मत समझो नारी को,
वह शक्ति का भंडार अपार।
पूज्य रही है आदिकाल से,
धारण कर लो यही विचार।।
-गोदाम्बरी नेगी