सशंकित जिंदगी
दहशत भरी समाज में जीवन जिया कैसे जाए
एक समस्या खतम(खत्म) होती नही कि दूजी खड़ी हो जाए ,
मन में भय आशंका रहती
हर- पल एक चिंता रहती
होगा क्या पल-पल में कहा कुछ न जाए ।
दहशत भरी समाज में….
भाग -दौड़ की जिंदगी में भाग गया है चैन
रोजमर्रा की जिंदगी में पता नही कब आती है रैन ,
हुँकार भरे धरा अब , फिर प्रलय आ जाए
दहशत भरी समाज में..
मुँह पसारे लोग खड़े हैं
बेरोजगारी में कितने लोग पड़े हैं,
मारामारी है अब चपरासी में
सब्र नही देशवासी में
सनक गई है शासन व्यवस्था अब कुछ कहा न जाए
दहशत भरी समाज में. ….
मूकदर्शक बनी है फौज हमारी
होती है उनपर पत्थरों से मारामारी
लचर है सरकार करती नही तैयारी
दुश्मनों से केवल करती है यारी
डर लगता है हमको, कश्मीर कहीं पाक न बन जाए
दहशत भरी समाज में….
देश भरा है गद्दारों से
दुश्मन बने हैं यारों से
कोई कहता है कश्मीर आबाद रहे
कोई कहता है कश्मीर में जेहाद रहे
कौन सही है कौन गलत है, अब ईश्वर से पूछा जाए
दहशत भरी समाज में जीवन जिया कैसे जाए
एक समस्या खत्म होती नही कि दूजी खड़ी हो जाए ।
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साहिल की कलम से……