सवैया छंद
“फाल्गुन”
(किरीट सवैैया छंद)
गोकुल में प्रभु रास रचावत मोर शिरोमणि रूप लुभावत।
हस्त धरी मुरली मन भावत गोपिन ग्वाल धमाल मचावत।।
फागुन की रुत देख सखा सब रंग-अबीर ,गुलाल लुटावत।
अंग लगा हुड़दंग करें सब भीगत चूनर नार लजावत।।
गोर कलाइन ले पिचकारिन ठीट सखी सब श्याम खिझावत।
फाग छटा बिखरी अब गोकुल आँगन झूम उठे जन गावत।।
साँवरि सूरत मोहनि मूरत भाव जगा उर चैन चुरावत।
नूतन ढोंग रचा मिल गोरिन कूल तरंग प्रसंग सुनावत।।
भोग-विलास चले पुरवा जब छंद बने मकरंद सुहावत।
बाजत ढोल-मृदंग सजें सुर राग हमें रसपान करावत।।
प्रीत पगी धुन रीति सिखा तन रोग भगा मधुमास नचावत।
कृष्ण प्रिया जब नेह दिखावत नंद लला ‘रजनी’ सुख पावत।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’