सवैया छंदों की शृंखला
सवैया छंदों की शृंखला~
दुर्मिल सवैया छंद, मदिरा सवैया, चकोर सवैया, मत्तगयंद या मालती सवैया, किरीट सवैया, अरसात सवैया, सुमुखी सवैया, मुक्तहरा सवैया, सुंदरी सवैया, कुंतलता सवैया, महामंजीर सवैया, अरविंद सवैया, महाभुजंगप्रयात सवैया, गंगोदक सवैया, वागीश्वरी सवैया, मंदारमाला सवैया-
यह मापनीयुक्त वर्णिक छंद है। सवैया छंद के प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या निश्चित है , हर वर्ण का मात्राभार भी निश्चित है
सवैया के चरण में वर्णों की संख्या 22 से 26 तक होती है।
इसके चरण में एक ही गण की कई आवृत्तियाँ होती है जिसके अंत में एक से तीन तक वर्ण अलग से जुड़े रहते हैं।
सवैया के चारों चरण सम तुकांत होते हैं और उनमें वर्णों की संख्या एक समान होती है।
कुछ महाकवियों ने कुछ ऐसे भी सवैया रचे हैं जिनके चरणों में वर्णों की संख्या असमान होती है। ऐसे सवैया छंद विधान पर आधारित नहीं हैं , अपवाद है , सम्मान में इन्हें उपजाति सवैया के रूप में स्वीकार कर लिया गया है
सवैया छंद का प्रभाव मारक क्षमता अन्य छंदों से सवाई अर्थात सवा गुनी होती है इसलिए संभवतः इसका नाम सवैया रखा गया है।
कुछ सवैया लिखे है , जो उदाहरणार्थ आपके सामने है
#दुर्मिल सवैया छंद
दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं, आठ सगणों (११२) और 12, 12 वर्णों पर यति , अन्त सम तुकान्त ललितान्त्यानुप्रास होता है।
अब तो रहना सबको सँग में , जग भारत का जय गान करें |
रहती धरती यह पावन है , मुनि संत यहाँ सब ज्ञान भरें ||
शिव गंग यहाँ बहती सुर से , सब संकट भी अभिमान टरें |
हरि बोल रहें हर सेवक के , हरि आकर भी सब हानि हरें ||
सृजन -© सुभाष सिंघई
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#मदिरा सवैया-
यह आकार में सबसे छोटा है। इसमें 22 वर्ण होते हैं। यह भगण की 7 आवृत्तियों के बाद एक गुरु जोड़ने से बनता है। सरलता से समझने के लिए इसकी वर्णिक मापनी को निम्नप्रकार लिखा जा सकता है-
211. 211 211 211. , 211. 211. 211. 2
संक्षेप में 211 X 7 + 2 भी लिख सकते हैं।
भारत में अब सैनिक चाहत , देश सदा पथ निर्मल हो |
कंटक काट करें अब रक्षण ,चाल चली मत दुर्बल हो ||
देव भजे जग जाग रखें हम , पावन गंग सदा जल हो |
सुंदर हो परिवेश जहाँ तट ,शान करें हम जो कल हो ||
©सृजन -सुभाष सिंघई
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#चकोर सवैया-
23 वर्ण. 7 भगण और ल। मापनी-
211 211 211 211 211 211 211 21
मदिरा सवैया + लघु =चकोर सवैया
भारत में अब सैनिक चाहत , देश सदा पथ निर्मल छांव |
कंटक काट करें अब रक्षण ,चाल चले मत दुर्बल पांव ||
देव भजे जग जाग रखें हम , पावन गंग सदा जल नांव |
सुंदर हो परिवेश जहाँ तट , शान करें हम पा हल दांव ||
©सुभाष सिंघई
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#मत्तगयंद या मालती सवैया-
इसमें 23 वर्ण होते हैं। यह भगण की 7 आवृत्तियों के बाद दो गुरु जोड़ने से बनता है। सरलता से समझने के लिए इसकी वर्णिक मापनी को निम्नप्रकार लिखा जा सकता है-
211 211 211. 211 211. 211 211 22
संक्षेप में 211 X 7 + 22 भी लिख सकते हैं।
मापनी से स्पष्ट है कि मदिरा के अंत में एक गुरु जोड़ने से मत्तगयंद बनता है अर्थात- मत्तगयंद = मदिरा + गा
हे शिव शंकर सर्प रहे सिर ,अंग हिमालय आलय तेरा |
शीष झुकाकर बंदन चंदन , है चरणों पर मस्तक मेरा ||
चाहत है अब गंग धुले सब, पाप करें मन मेें खग डेरा |
पावन है शिव धाम सुनें जग ,राहत का हल दें वह घेरा ||
© सुभाष सिंघई
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#किरीट सवैया- 24 वर्ण. , आठ भगण
211 211 211. 211 211 211 211 211
अथवा 211 X 8
दो प्रभु दान दया मुझको अब, सेवक मांगत शीष नवाकर |
चाहत है बस दान दया निधि , पास रहे नित मंगल आकर ||
है विनती मम एक सुनो अब, दास कहे दर नाथ सुनाकर |
दो वरदान सदा रह सेवक , सेव करूँ बस माथ झुकाकर ||
©सुभाष सिंघई
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#अरसात सवैया-
24 वर्ण. 7 भगण और गालगा
211 211 211 211., 211 211. 211 212
अथवा 211 X 7 + 212,
चाहत है अरदास करूँ अब , वैभव पास नहीं अब चाहता |
पूजन ही प्रभु पावन पाकर , हर्ष धरोहर नाथ दर मांगता ||
बोल सुनें हम प्रेम भरे रस , शान रहे प्रभु गान सुर पालता |
ताल मिलाकर नैन झुकाकर, देन दया निधि मै उर झांकता ||
©सुभाष सिंघई
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#सुमुखी सवैया-
23 वर्ण. 7 जगण + लगा
121. 121 121 121 121 121 121. 12
अथवा 121 X 7 + 12,
पुकार दुखी जन देख सुभाष वहाँ कुछ काम सुधार करो |
करुण रहे मन गान सुजान. विवेक यथा उपकार करो ||
अनेक जहाँ उपकार सनेह वहाँ मत मान निहार करो |
कहें प्रभु जीव महेश अनादि गणेश बनो उपचार करो ||
©सुभाष सिंघई
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#मुक्तहरा सवैया-
24 वर्ण। आठ जगण। मापनी-
121 121 121 121 121 121 121 121
अथवा 121 X 8,=मुक्तहरा
पुकार दुखी जन देख सुभाष,वहाँ कुछ काम सुधार जरूर |
करुण रहे मन गान सुजान. विवेक रहे उपकार नूर ||
अनेक जहाँ उपकार सनेह , वहाँ मत मान निहार दूर |
कहें प्रभु जीव महेश अनादि, गणेश बनो उपचार शूर ||
©सुभाष सिंघई
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#सुंदरी सवैया-
25 वर्ण. 8 सगण + गुरु
112 112 112. 112. 112 112. 112 112 2
अर्थात 112 X 8 +2
जब साजन ने सजनी निरखी , परखी कहता रस सी लगती है |
नथनी नग भी चमके झलके ,झुमकी झलकी हिलती कहती है ||
पग पायल घायल है करती, सुर ताल सरासर भी मिलती है |
परखे निरखे मम प्रीतम ही , सजनी तब ही रजनी सजती है ||
©सुभाष सिंघई
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#कुंतलता सवैया-
26 वर्ण 8 सगण + दो लघु
112 112 112 112 112 112 112 112 + 11
अर्थात 112 X 8 +11,
जब साजन ने सजनी निरखी , परखी कहता रस सी लगती कुछ |
नथनी नग भी चमके झलके ,झुमकी झलकी हिलती कहती कुछ ||
पग पायल घायल है करती, सुर ताल सरासर भी मिलती कुछ |
परखे निरखे मम प्रीतम ही , सजनी तब ही रजनी सजती कुछ ||
©सुभाष सिंघई
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#महामंजीर सवैया-
26 वर्ण। आठ सगण + लघु गुरु
112 112 112 112 112 112 112 112 + 12
अथवा 112 X 8 + 12
जब साजन ने सजनी निरखी , परखी कहता रस सी लगती यहाँ |
नथनी नग भी चमके झलके ,झुमकी झलकी हिलती कहती यहाँ ||
पग पायल घायल है करती, सुर ताल सरासर भी मिलती यहाँ |
परखे निरखे मम प्रीतम ही , सजनी तब ही रजनी सजती यहाँ ||
©सुभाष सिंघई
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#अरविंद सवैया-
25 वर्ण. आठ सगण + एक लघु ।
112 112 112 112 112 112 112 112 + 1
अथवा 112 X 8 + 1,
जब साजन ने सजनी निरखी , परखी कहता रस सी अब नीर |
नथनी नग भी चमके झलके ,झुमकी झलकी हिलती अब हीर ||
पग पायल घायल है करती, सुर ताल सरासर भी मिल तीर |
परखे निरखे मम प्रीतम ही , सजनी तब ही रजनी रण धीर ||
©सुभाष सिंघई
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#महाभुजंगप्रयात सवैया
24 वर्ण। सात यगण
122 122 122 122 122 122 122 122
अथवा 122 X 8
कहे नार देखो यहां रैन सूनी , मुझें छोड़ रूठी वहाँ सोत पाली |
रहें आप लाचार मेरी न माने , बजे साज मेरे यहाँ नेह ताली ||
नहीं नैन आँसू झरें मौन भी है , खुले कान बंद लगा दीन माली |
बिना बात खारा हुआं नीर सारा , जलें लोग देखों यहाँ बीन बाली ||
© सुभाष सिंघई
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#गंगोदक सवैया-
24 वर्ण। सात रगण। मापनी-
212 212 2. 12 212 212 212 212 212
अथवा 212 X 8
बोलते बोल मीठे, मिले आपको , नेह सारा , रहे धीरता पास में |
देखते शिल्प,गाथा बने प्रीति की ,शारदा सी रहे काव्यता पास में ||
दीनता भी रहे दूर ,सारी मिटे वेदना देख लो शूरता पास में |
जानिए आप ही लीजिए नेह भी, भाव से चाह से , वीरता पास में ||
©सुभाष सिंघई
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#वागीश्वरी सवैया-
23 वर्ण. , सात यगण + लघु गुरु
122. 122 122 122. 122. 122 122 + 12
अथवा 122 X 7 + 12
करे काम पूरा सही आपका ही , रहे गान होती सदा शान है |
चलेगें जहाँ नूर होगा उजाला , दिखे भाल पूरा सुखी ज्ञान है ||
हमारा रहे वेश सादा पगों में , जमाना झुके देखिए आन है |
बनाएं रखें देश सारा करों में , तिरंगा हमारा रहे ईमान है ||
© सुभाष सिंघई
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#मंदारमाला सवैया-
22 वर्ण। सात तगण +गुरु अथवा 221 X 7 + 2
221. 221 221 221. 221 221. 221 +2
गंगा चली वेग से, रुकती है महादेव के , गेह प्यारी लगे |
संसार ने भी कहा देख भोले महादेव की नेह न्यारी लगे ||
भागीरथी देख लो मानते है नहा गंग चंगा सुधारी लगे |
भोला महा देव गंगा हरे पाप तापा सभी को दुलारी लगे ||
© सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंदों को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर