सवा-सेर
” सवा-सेर ”
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सुखदेव
भगतसिंह
राजगुरू……
हिन्दुस्तान के
शेर थे |
कभी झुके ना !
कभी रूके ना !
वो गौरों पर ……
सवा-सेर थे ||
पहन बंसती चोले को
इंकलाब को
गाया था !
दे दी अपनी कुर्बानी
ये वतन उन्हें बस !
भाया था ||
उम्र थी छोटी
पर ! सोच बड़ी थी !
आजादी कुछ दूर
खड़ी थी |
इनके लहू ने
सींचा था तब !
आजादी की बेल
बढ़ी थी ||
मलमल समझ के
डाले फंदे !
ऐसे थे ये
रब के बंदे |
“दीप” हृदय में
सदा विराजें…..
नित-नित करता !
उनको वंदे ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”