सवाल…जवाब…
ज़िंदगी तो है इक सवाल जिस का कोई जवाब नहीं
मौत तो है वोह जवाब जिस पर कोई सवाल नहीं
जी ले-ज़ख़्मों को सी ले-दिन दो चार
मिलता जब तक सवाल का जवाब नहीं
भर ले आँखों में हसीन सपने-बेशुमार सपने
वोह आँख ही क्या जिस में कोई ख़्वाब नहीं
बुलंद कर ख़ुद को,कर्म कर,दुआ कर
ख़ुदा की रहमतों का होता कोई हिसाब नहीं
जब देता है छप्पर फाड़ के देता है
तब हिसाब की भी रहती कोई किताब नहीं
कर्म कर, दुआ कर,संजो ले आँखों में सपने
हक़ीक़त होता कौन सा ख़्वाब नहीं
रास्ते के काँटे बन जाते हैं फूल
कौन सी राहों में होती आदाब नहीं
कर्म कर, दुआ कर, बुलंद कर ख़ुदी को
ख़ुदा की रहमतों का होता कोई हिसाब नहीं
– राजेश्वर