((( सवाल – जलाता कौन है )))
सवाल तो कई उठते थे ज़हन में हमारे,
जवाब मगर यहाँ हमे बताता कौन है.
दवा समझ ज़हर पिलाती रही ज़िन्दगी,
ज़हर और दवा में फर्क हमें समझाता कौन है।
शरीफ चेहरों का नक़ाब ओढ़ के बैठा है हर कोई ,
मन के अंदर जो हैवान छुपा है,दिखाता कौन है।
ये मंदिर … ये मस्ज़िद दोनो अलग हैं यही बताते हैं हमें,
लेकिन इनको मिलाने का रास्ता यहाँ बनाता कौन है।
हम तो तैयार थे जंग करने के लिए मैदान में,
आसमा में बैठे उस सितारे को धरती पे लाता कौन है।
तूफान के ज़ोर में कश्ती हमारी फसती रही हवायों के जाल में,
किनारे सब पूछते रहे लहरों से,इनको पहले डूबाता कौन है।
तुमसे मिल कर आये तो बैचैनी थी बहुत दिल में ,
जो चला गया वो अपना था,तो जिससे मिल कर आये वो नजरें चुराता कौन है।
कई चेहरे नज़र आते हैं इस ईट-पत्थर के शहर में,
सब कहते है हम अपने हैं,तो यहाँ पराया बन आता कौन है।
हम मर गए और किसी को खबर तक न हुई ,
सब देख यही कहते रहे,इस लाश को अब जलाता कौन है।