सवाल क्यों
तुमने ही तो कहा था
हम एक है।
फिर इतना बवाल क्यों?
मेरी चुप्पी पर भला अब
तुम्हारा सवाल क्यों?
मैं खुले में चलूं तो
बदचलन हो जाती हूं।
और तुम चलो तो
मर्द हो जाते हो।
एक ही माटी के दो अंश
फिर ये अंतराल क्यों?
तुमने ही तो कहा था
हम एक है।
फिर इतना बवाल क्यों?
मेरी चुप्पी पर भला अब
तुम्हारा सवाल क्यों?
भले ही स्त्री हूं मैं
पर पहले इंसान हूं मैं।
पत्नी, माँ,बहन रूप में
सृष्टि की पहचान हूं मैं।
हर समय मेरी ही अस्मत
से खिलवाड़ क्यों?
तुमने ही तो कहा था
हम एक है।
फिर इतना बवाल क्यों?
मेरी चुप्पी पर भला अब
तुम्हारा सवाल क्यों?
जरा सा खुलकर जी लो तो
मर्दों की शान फीकी हो जाती है।
सारा दोष औरत पर मढ दिया जाता हैं।
चरित्र ढीला है खुद मर्द का
पर औरत का गढ़ दिया जाता है।
फिर से स्त्री हलाल क्यों?
तुमने ही तो कहा था
हम एक है।
फिर इतना बवाल क्यों?
मेरी चुप्पी पर भला अब
तुम्हारा सवाल क्यों?