सलीके से हवा बहती अगर
सलीके से हवा बहती अगर
मेरे होके वो जो रहती अगर॥
समुन्दर को भी ठुकरा देता मैं
जो मुझसे दोस्ती करती अगर॥
जहां सांसो को थोड़ा सुकुन हो
कोई कश्ती एसी होती अगर ॥
बदल देता मैं खुद हर रूल को ,जो
हवा से ज्यादा , टच में रहती अगर॥
जमाने भर से नफ़रत मोल लूं
कभी हमसे गले लगती अगर॥
पुराने जख्मों को भुल जाता मैं
मेरे सँग सँग वो जो जगती अगर॥
मैं कब के उनसे , लग जाता गले
वो जो कुछ प्यार से कहती अगर॥
नितु साह
हुसेना बंगरा ,सीवान बिहार