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5 Sep 2024 · 1 min read

“सलाह” ग़ज़ल

-“सलाह”

निश्छल नहीं हैं लोग, भुलाया न कीजिए,
हर बात हर किसी को, बताया न कीजिए।

रूमानियत न होश, परिन्दों से छीन ले,
यूँ चाँदनी मेँ, आ के नहाया न कीजिए।

ज़ालिम है जवानी, नहीं है ज़ोर किसी का,
छत पे यूँ ज़ुल्फ़ खोल के, जाया न कीजिए।

माहौल भी तब्दील हो चुका है शहर का,
यूँ रब्त हर किसी से, निभाया न कीजिए।

अहबाब भी बदल चुके हैं, साथ वक़्त के,
जो बीत है चुकी, वो सुनाया न कीजिए।

नज़रों से बुरी, बच के अब जीना मुहाल है,
घर आप मिरे, रात को, आया न कीजिए।

बहुरूपियों का जाल बिछ रहा है हर सिमत,
हर इक पे अब तरस भी यूँ, खाया न कीजिए।

“आशा” ही नहीं, आपसे है, इल्तिजा मेरी,
इतना भी मगर हमको, रुलाया न कीजिए..!

अहबाब # दोस्त, friends
सिमत # तरफ़, directions

##——-##——-##——-##—-

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 42 Views
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Books from Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
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