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2 Jun 2022 · 1 min read

✍️सलं…!✍️

✍️सलं…!✍️
—————————–//
सोबतीला माझ्या
एक रोजनिशी दोन लेखणी..
आसवांचा पूर सदा
दाटून येई अन्तःकरणी..

तुटलेल्या काळजात
शिल्प वेदनांचे
माझ्या हस्ते मीचं कोरले..
दुर कुठे गवसत नाही
आपलं शेत शिवार
अंगणी माझ्या
दुःखाचे बीज मीचं पेरले..

आठवणीचा बांध
कसा भरून आला.
रित्या डोळ्यातून नुसत्या
वाहती वर्धा वैनगंगा..
वाटते कुणी तरी
साद घालावी त्या दिशातुनी
अनं धावून जावी पाऊले भराभरा
पण वाट अडवती गर्दिच्या रांगा..

केव्हा तरी उंच उंच
भरारतील आशेची पाखरे
आनंदाने विश्वासाच्या गगनात..
ठरू नये अखेरचा श्वास माझा
हा कोरडाच दिलासा
आटलेल्या भावनेच्या मनात..
———————————//
✍️”अशांत”शेखर✍️
11/05/2022

Language: Marathi
Tag: Muktak
260 Views

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