सर झुका रहा हूँ मैं
किरायेदारी चुका रहा हूँ मैं
वो गम दे या खुशी , मुस्कुरा रहा हूँ मैं
ऊपरवाले तू सच्चा मकान मालिक है
तू घर सजा रहा है बचा रहा हूँ मैं
तूने मुझे अपनी नेमते जो दी
उन सब का आज शुक्र मना रहा हूँ मैं
मुझको तेरे इशारे कभी समझ नही आये
पर मुद्दत बाद उन पर मुस्कुरा रहा हूँ मैं
वक़्त तेरी और हम वक़्त की कठपुतली है
तेरी हर रजा पर नाच दिखा ऱहा हूँ मैं
अब और क्या तारीफ में कहूँ ए खुदा
ले देख अपना सर झुका रहा हूँ मैं