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25 Jun 2016 · 1 min read

मेरा भारत

मुक्तक
है सदाचार की गंगा, संस्कृति से सज सुरभित है।
बंधुत्व नाम का अक्षर, उर अंतस में अंकित है।
मुनियों के तप से तपकर, निखरी वसुधा भारत की।
जिस पर है गर्व सुरों को, यह पुण्य धरा अतुलित है।
इस भू की गौरव गाथा, कवियों ने सदा सुनाई।
अपनत्व प्रेम की नदियों, से जन मन शुचि पुलकित है।
ये शौर्य पावनी धरती, वीरों को जनने वाली।
जिसने भी जन्म लिया है, वह सुर नर अति गर्वित है।
ऋतुराज अलंकृत करता, अमृत छलकाती नदियाँ।
गिरि रत्न उगलते रहते, हर जन मानस अर्पित है।
नव सृजन अंक में पलता, नतमस्तक है हर कोई।
‘इषुप्रिय’ माँ के आँचल में, हर युग धारा पोषित है।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुरकलां, सबलगढ(म.प्र.)

2 Likes · 243 Views
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