सर्वश्रेष्ठ कर्म
सर्वश्रेष्ठ कर्म
रंगमंच जग है सारा,
हम इसके किरदार ।
अभिनय का खेल हमारा,
प्रभु हैं सृजनहार ।
पाप-पुण्य का मर्म गहरा,
नव – चिन्तन हर बार ।
आत्मा पर प्रकृति का पहरा,
परमात्मा से जुड़ता तार।
कर्म के अतिरिक्त न कोई चारा,
नर हो या नार।
जिससे हो उद्धार हमारा,
सर्वश्रेष्ठ वही हर बार।
अवगुणों का मनुष्य है मारा,
भक्ति है खेवनहार ।
पूर्ण समर्पण ही एक सहारा,
यदि भव-बाधा करना हो पार ।
– डॉ० उपासना पाण्डेय