सर्वंश दानी
भारत की धरती ऋणी सदा,
जन जन का है आभार बहुत।
करूं चरण बन्दना मैं मन से,
दसमेश पिता कई बार बहुत।
आगे भी खूब दानी होंगे,
उनमें कई भरेगे रीतेंगे।
तुझ सम कोई दानी न होगा,
युग पर युग कितने बीतेंगे।
पहला बलिदान पिता ने दिया,
बनकर रक्षा का वृहद सेतु।
परिवार वार दिया गुर तूने,
इस देश कौम और धर्म हेतु।
चारों बेटे चढ़े बलिवेदी,
और मां गुजरी किया स्वर्ग गमन।
सर्वंश दान देने वाले,
हे परम् सन्त सत बार नमन।
सतीश सृजन,