सर्दी
धरती ने ली, कुछ करवटें।
सूरज का ताप कुछ इस तरह सिमटा!
तन पर गर्म कपड़ों को लिया हमने लिपटा
जब हवा ने की, कुछ शीतल हरकतें।
महीना दिसंबर का आया।
शीत ऋतु साथ में लाया।
गरम पकोड़े,अदरक चाय!
गजक मूंगफली रेवड़ी का देखो! ज़माना आया।
हलवा भटूरे, पूड़ी कचौड़ी को भी हमने खूब आजमाया।
कोहरे ने धूप को कुछ इस तरह समेटा,
निकल आए बाहर! मफलर टोपी और रजाई।
छोटे हुए दिन,लंबी रातों में जिंदगी कुछ यूं सिमट आई।
सर्दियों ने कुछ ऐसे ही, अपनी आहट सुनाई।
गर्म कपड़े, स्वेटर बूट पहन कर सब थोड़ा। बाहर टहल आएं।
कुछ नजर घुमाई तो देखा
फुटपाथ पर बिछौने पे कुछ तन, कुछ सिमटते हुए हैं, पड़े।
तो चलो!
एक दुशाला! उन्हें। देखकर।
अलमारी को कुछ हल्का कराएं।
थोड़ी गजक मूंगफली रेवड़ी।
हम उनको भी बांट आऐं।
सर्दी की खुशियों में कुछ और लोगों को शामिल कराएं।
लंबी ठंडी रातों में। कुछ रोशनी के दीपक जलाऐं
कुछ हाथ बढ़ाएं, हम भी कुछ कदम उठाऐं।
सर्दी के बाद आने वाले बसंत की कुछ आशाऐं महकाऐं।