सराहल बहुरिया डोम घर जाए – जातिवादी कहावत/ DR. MUSAFIR BAITHA
“सराहल बहुरिया डोम घर जाए” – बिहार के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित एक देसी कहावत है।
आज एक सरकारी कार्यालय में एक उदार एवं भलेमानस माना जाने वाला एक द्विज कर्मी दूसरे सवर्णकर्मी को यह कहावत सुना रहा था। कहावतवाचक का तात्कालिक आशय यह था कि जो कर्मचारी ज्यादा काम करता है उसे गधे की तरह काम का बोझ लाद दिया जाता है।
जबकि कहावत का मूल अथवा मुख्य भावार्थ यह है कि किसी की वह बहु जो अपने अच्छे अथवा आदर्श व्यवहार एवं आचरण के लिए घर एवं समाज में सराही जाती रही है वह भी किसी डोम जैसे अछूत के घर जाकर (जहाँ नहीं जाना चाहिए) भ्रष्ट हो गयी है।
तो देखा मित्रो! उच्च जातीय ग्रन्थि, भेदभाव, घृणा एवं ब्राह्मणवाद का परचम फहराने वाली उपर्युक्त लोकोक्ति एकबारगी सुनने में कितनी प्यारी लगती है!