सरहद सीमा मातृभूमि का🙏
सरहद सीमा मातृभूमि का
अभेद्य कवच पाषाण खड़ा
चार दिवारों से घिरा आंगन में
अमन चैन शांति पैगाम पड़ा
विस्तृत नभ नूतन अम्बर छोर
अपार सभ्यता संस्कृतियों का
नव पुरातन ज्ञान विज्ञानअम्बार
काले मेघा संग श्वेत वर्फ फुहार
उड़ता कबूतरी दीदी का संसार
बिन बरखा अति वृष्टि उपहार
हाहाकारों का छिपा इतिहास है
तपती तमस मृगतृष्णा भ्रमित है
प्राणि प्राणपखेरू उड़ान बड़ा है
फटता घन आपदा विपदा त्राहि
बिवस जान दबता निज माटी में
खुलता पोल जन रखवालों का
खोखले झूठी टूटते कसमें वादें
पूल तटबंध प्राण प्रतिष्ठा मिटते
सहारा मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
खुले नभ पलते जन भोले भाले
डोलते सिंहासन बचानें लगते
मोह माया ममता प्रेम करूणा
धर्म कर्म आस्था मातृ संस्कार
आंगनवाड़ी सेवाओं का जर्जर
होता दिखता सद् भावभरा द्वार
जिम्मेदार शासन प्रशासन नेता
सरकार मजबूर जनता बेहाल
मौकापरस्त घुसपैठी सरहद पार
ताक झांक निहार रहा है रिपुबल
आता परिन्दा मिटता है प्रतिपल
छोड़ द्वेष मतभेद समझ कत्तर्व्य
निज पराये तो हैं हीं अपनों का
जान बचा भारत वीर सपूतों का
धर्म कर्म संस्कार यही है हमारा
मातृभूमि सीमा रखना है सुरक्षित
एक सौ चालीस करोड़ का हँसता
पाषाण प्राचीर आँगन में है परिवार
भारत विशाल निज मातृभूमि का ।
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टी . पी. तरुण