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21 Sep 2019 · 1 min read

सरहदी

हाँ, सरहदी हम, सरहद मेरी,
माँ के आँचल सा, पोषक है।
पर जानेगा कैसे, बात ये वो,
जो जन जनता, का शोषक है।।

ना अर्ज कोई, ना मर्ज कोई
हम फर्ज के, अपने वाहक है।
नाहक ही ना, भिड़ना हमसे,
हम मधुर बड़े, ही रोषक हैं।।

-:-

हम जला, तपा, काया अपना,
तुझे हरकत की, ताक में देखे है।
ओ सरहदी गुंडे, हमने तुझको,
छिपते दर्रो की, फाँक में देखे हैं।।

अरे कायर तूँ हमे, क्या डरायेगा,
हम तुझे तेरे, औकात में देखे हैं।
तू सुतली न सुलगता, हमें दिखा,
हमने दहकते आग, राख में देखे हैं।।

-:-

वो भीड़ से जैसे, अलग हुवा,
वही एक धमाका, फुट गया।
एक कायर, जाहिल, उन्मादी,
जाने कितनो का, घर लूट गया।।

ये मिट्टी में मिलने, वाले बदन,
जन्नती राह के, कितने भूखे है।
ना दया रही, ना धरम किबला,
रूह-ए-पाक भी, कितने रूखे हैं।।

-:-

ऊंचे नभचुंबी, महल, अटारी,
पलभर में खाक, हूवे साहिब।
उस हस्ती के आगे, क्या विसात,
डर से अखलाक, हूवे साहिब।।

हम तो अदने से, हैं सेवक,
जो देखा “चिद्रूप” बोल गया।
पर बात वो मुझको, समझाना,
हम क्यों दो फाँक, हूवे साहिब।।

-:-

एक आर गया, एक पार गया,
बदली नियत, धर्म, विचार गया।
वो मिट मान गया, सम्मान गया,
मिटा भाई भाई का, प्यार गया।।

अब आँख में आँसू, के बदले,
जले अग्निशिखा के, ज्वाले है
निर्लज पूत से, माँ का दामन,
रक्षा करते सरहदी, मतवाले हैं।।

-:-

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २१/०९/२०१९ )

Language: Hindi
1 Like · 475 Views
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