सरस्वती वंदना
मुशाफिर हैं हम तो चले जा रहे…
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हे सारदे माँ, हे वीणापाणि विद्या का मुझको भी वरदान दे दो ।
लिखने की सुमति देना भारती, रसना को मेरी भी ‘स्वर- ज्ञान’ दे दो ।।
श्रद्धा सुंगंधित ‘पुहुप’ चढ़ाऊं, ‘दीप-धूप’ से तुम्हे मनाऊँ ।
सुबह श्याम तेरी करूँ वन्दना, काव्य शिखर का ‘सोपान’ दे दो ।।
हे सारदे माँ…
कर ‘पुस्तक’ धरणी शतरूपा, ज्ञान,विवेक,सत्य स्वरूपा ।
सुर नर मुनि हृदय ‘तम’ हरणी, मेरी कलम को भी पहचान दे दो ।।
हे सारदे माँ…
‘तिमिर’गहन माँ ‘धवल’ किरण दो, ‘मन मृग’भटके वन में ‘हिरण’ सो ।
‘दास’ बनालो हंसवाहणी, चरणों में आपने ‘स्थान’ दे दो ।।
हे सारदे माँ…
वागेश्वरी माँ ‘शील’, ‘शबर’ दो, कर ‘वरदायक’ शीश पे धरदो ।
दया,प्रेम हिय करुणा भरना, बुद्धि, विवेक, समझ ज्ञान दे दो ।।
हे सारदे माँ…
तोहे ध्यावे ‘देवगण’सारे, ‘वेद-पुराण’ हैं तेरे सवारे ।
तुम बिन ‘ज्ञान’ कोई ना पाता, मेरे विचारों को ‘उत्थान’ दे दो ।।
हे सारदे माँ…
हे पद्मासनि, हे शुभकरणी, तीनों लोक ‘निर्बाध’ विहरणी ।
‘सावन’ तेरी शरण में मैया, हे माँ भवानी इधर ‘ध्यान’ दे दो ।।
हे सारदे माँ, हे वीणापाणि…
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कवि/गीतकार – सावन चौहान कारोली
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534