सरस्वती वंदना : ग़ज़ल
(बह्र मजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
अर्क़ान: मफऊलु फाइलातु मफाईलु फाइलुन
वज्न: 221 2121 1221 212
काफ़िया: ‘आन’, रदीफ़: ‘कर’)
वंदित प्रथम गणेश हैं उनका ही मान कर.
देवी सरस्वती का मगर पहले ध्यान कर.
आसन कमल व श्वेत बसन शक्ति ब्रह्म की,
वागेश्वरी के नाम से प्रातः अजान कर.
पुस्तक व माला धारतीं हैं वीणा वादिनी,
अब लेखनी ले हाथ में उनका बखान कर.
कविता ग़ज़ल व छंद में देवी सरस्वती,
इनके सृजन श्रवण का तू पीयूष पान कर.
रहती हैं देवी ज्ञान की सत्संग हो जहाँ,
माता का करके ध्यान उसी ओर कान कर.
अर्जित किया जो ज्ञान वो माता की है कृपा,
जो भी छुपा रहा है वो सर्वस्व दान कर.
‘अम्बर’ का नत हो शीश सदा माँ के सामने,
देती हैं हम को स्नेह ये संतान जान कर.
–इंजी अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’