सरस्वतीगान
तन -मन धन अधिनायक जय हे !
भारती भाग्य विद्यात्री ।
अमल, कमल पर शोभित मां बुद्धिदात्री ।
कर मे वेद पत्र ।
धवल, नवल शुभ्र -वस्त्र ।
चरणन् तरणी एकत्र ।
सिर पर हिमालय छत्र ।
देश न भारत अन्यत्र ।
अम्ब पूज्य कोटि -सहस्त्र ।
जग मे मां हो सर्वत्र ।
अज्ञान न हो अत्र -तत्र ।
मां शारदे दो हम सबको ।
उज्ज्वल, विमल छवि ।
वैसे बिखरे निखरे जैसे रवि ।
जगमग -जगमग ज्योति ।
निर्मल, विमल संजोती ।
वीणावादिनी दे हम सबको ।
नव रंग, उमंग, विमल मति ।
दक्षिण -उत्तर -पूरब -पश्चिम ।
कल -कल तरणी जलधि तरंग ।
रंज न कोई संग ।
काट मोह माया का बंधन स्तर अम्ब ।
रहे न मूढ का जंग ।
तन – मन मंगलदायिनी जय हे ।
भारती भाग्य विद्यात्री ।
जय हे, जय हे, जय हे ।
जय, जय, जय, जय हे ।
?? Rj Anand Prajapati ??