सरल के दोहे
चिंता छोड़ो अरु करो, अपने सारे काम।
अगर काम को चाहते, देना तुम अंजाम।।
सबको अब मैदान में, करना है प्रस्थान।
अपनी गर इस देश मे, बनवाना पहिचान।।
मिले कड़ी से जब कड़ी, बन जाये जंजीर।
कलम सतत चलती रहे, इक दिन बनो कबीर।।
सदियों तक सबको सभी, रखे जमाना याद।
खुद का खुद भगवान बन, खुद से कर फरियाद।।
रख लो निर्मल भावना, जैसे निर्मल नीर।
अपनों को अपना कहो, तभी मिटेगी पीर।।
साथ सभी का चाहिये, करना अगर विकास।
खींचातानी से मिले, सामाजिक संत्रास।।
चलना है चलते चलो, कछुआ वाली चाल।
बैठे से तंगी बढ़े, हो जाओ कंगाल।।
खड़ा ऊंट नीचे पड़ा, ऊंचा बड़ा पहाड़।
बार बार की हार को, देना बड़ी पछाड़।।
चार दिनों की चांदनी, चार दिनों का खेल।
जीत सदा संभावना, मत हो जाना फेल।।
मीठे मीठे वचन से, कटते मन के जाल।
कह कह तुम पर नाज सब, करते ऊंचा भाल।।
मित्र इत्र सम चाहिये, पावन परम् पवित्र।
महके जिसके चित्र से, चन्दन भरा चरित्र।।
रक्षाबंधन को करो, रक्षा का त्यौहार।
बहनों पर कोई कभी, करे न अत्याचार।।
दयाभाव जिंदा रहे, दया धरम का मूल।
जाति धरम के नाम पे, पापी बोते शूल।।
दयाभाव जिंदा रहे, दया धरम का मूल।
जाति धरम के नाम पे, पापी बोते शूल।।
फेसबुकों पर फेस को, रखना बिल्कुल साफ।
बन जाये पहचान भी, अगर चाहते आप।।
दुनियाभर की भीड़ में, ढूंढ रहे अस्तित्व।
हर व्यक्ति को चाहिये, शानदार व्यक्तित्व।।
प्रतियोगी इस दौर में, कीचड़ सबके हाथ।
उजले को धुंधला करे, होती मिथ्या बात।।
साथ सभी का चाहिये, करना अगर विकास।
खींचातानी से मिले, सामाजिक संत्रास।।
सबका अपना दायरा, सबकी अपनी सोच।
करते स्वारथ साधने, तू तू मैं मैं रोज।।
सत्य बड़ा खामोश है, झूठ रहा चिंघाड़।
सत्य बोल दिखला दिया, जिंदा दूंगा गाड़।।
आज राज जाने बिना, मत मढ़ना आरोप।
सरे जमाने से हुआ, सच्चाई का लोप।
सुबक सुबक कर रो रहा, आज बिचारा सत्य।
झूठ आज जमकर करे, ठुमक ठुमक कर नृत्य।।
सरकारी थैला भरा, करते बन्दरबाट।
अगर बीच में आ गए, खड़ी करेंगे खाट।।
चुप्पी का माहौल है, सबके सब खामोश।
चलते फिरते जागते, लगते सब बेहोश।।
ढोंगी पाखण्ड़ी रचे, बहुविधि नाना स्वांग।
पण्डे डंडे ले करे, डरा डरा कर मांग।।
ज्ञान बांटना सिर्फ है, ज्ञान बांटते नित्य।
करनी में अंतर रखे, कथनी के आदित्य।।
चाहे मस्जिद ही बने, या मंदिर बन जाय।
इनसे तो अच्छा रहे, वृद्धाश्रम बन पाय।।
मंदिर मस्जिद के लिये, करते लोग विवाद।
घर को मंदिर मानके, बन्द करो प्रतिवाद।।
दारू पीकर दे रहे, दारू पर उपदेश।
पीने से घर टूटता, पैदा होता क्लेश।।
राम नाम की लाठियां, सिर को देती फोड़।
लोभी, दंभी, कामियों, के भीतर की होड़।।
मारामारी से अगर, मिल जाये प्रभु राम।
ज्यादा मंत्रों से करे, फिर तो लाठी काम।।
राम नाम जपते रहो, मन मे हो विश्वास।
जूते लातों के बिना, पूरण होगी आस।।
मंदिर बनने से बढ़े, गर तकनीकी ज्ञान।
उन्नत भारत के लिये, फिर होगा वरदान।।
मस्जिद से संसार में, गर होवे कल्याण।
फिर तो सारे विश्व में, करवा दो निर्माण।।
मंदिर मस्जिद की लगी, कितनी बड़ी कतार।
फिर भी लड़ते ही रहे, लेकर हाथ कटार।।
धर्म नाम की चीज का, है ही नहीं न ज्ञान।
वही बाटते ज्ञान को, हो कर के विद्वान।।
मानवीय संवेदना, जग में हुई है शून्य।
पूस कड़ाके को कहे, आज भेड़िये जून।।
आडम्बर को मानना, हमें नहीं स्वीकार।
लूटपाट पाखण्ड को, कहना है धिक्कार।।
तकनीकी के ज्ञान पे, करना मनन विचार।
तर्कहीन सिद्धांत से, कर देना इनकार।।
धर्म सिखाता है सदा, कैसे पाए सत्य।
सत्यमार्ग को धारिये, जो आधारित तथ्य।।
हिंसक होना मानिये, इसे धर्म प्रतिकूल।
दयाभाव के मूल में, धर्म छिपा अनुकूल।।
अगर आपको चाहिए, जीवन का उद्देश्य।
करना तुमको फिर पड़े, कर्ज परम् विशेष।।
तीन बार मत बोलना, तलाक तलाक तलाक।
मजिस्ट्रेट अब बोलता, सटाक सटाक सटाक।।
दीनदुःखी पर हो दया, मिल जाये भगवान।
दिल में मंदिर ले बना, कहलाओ इंसान।।
कलम प्रखर पाषाण को, करदे चकनाचूर।
अभिमानी के दम्भ को, पल में चूराचूर।।
घूमघूम फिरते रहो, मधुकर सा आनन्द।
वरना घर भीतर रहो, कर दरवाजा बंद।।