सरला की शादी
एक समय की बात है सरला नाम की एक साधारण सा लड़की अपनी विधवा माँ चाँदनी और छोटा भाई अनुज के साथ रहती थी ।वह विवाह के योग्य हो चुकी थी परंतु अनुज केवल आठ वर्ष का बालक था।चाँदनी सरला के विवाह के लिए चिंतित रहा करती थी।
उसके पिता की मृत्यु एक साल पहले ही किसी बिमारी के इलाज न होने के कारण हुई थी। उसके पिता ही उसके परिवार का एकमात्र पालनकर्ता थे । उनके जाने से चाँदनी और बच्चों पर पहाड़ टूट पड़ा था लेकिन चांदनी ने काम करना शुरू किया । वह दूसरों के घर बर्तन धोती तथा झाडू -पोछा का काम करती थी।
उनके पास जमीन का एक टुकड़ा भी था जिसपर वह सब्जियाँ उगाकर बाजार में बेचा करती थी । इसी तरह दूसरों के घर में काम करके तथा सब्जियाँ उगाकर जो कुछ प्राप्त होता था उससे सरला, अनुज. और चांदनी का किसी तरह गुजारा हो रहा था।
सरला स्वभाव से बहुत अच्छी थी। उसका रहन-सहन बिलकुल साधारण सा था । वे अपनी परिवार के स्थिति को समझती थी एवं अपने घर के सारे काम -काज वहीं किया करती थी।
सरला को देखने के लिए लड़के वाले तो बहुत आते थे । वे सरला को तुरंत पसंद भी कर लेते थे लेकिन दहेज नहीं देने के कारण सारे रिश्ते लौट चुके थे,और वे जाते वक्त सरला और उसके परिवार के गरीबी का मजाक भी उड़ाते थे।सरला पूरी तरह से अपनी विवाह की उम्मीद छोर चुकी थीं।
आज फिर एक बड़े घर का लड़का उसे देखने आया था । चाँदनी से जितना हुआ उतना उसने लड़के के परिवार वालों का स्वागत किया । लड़का का नाम कबीर था । वह शहर में बिजनेस करता था और एक अच्छे खानदान से था । उसका पूरा परिवार शहर में ही रहता था |
कबीर को एक अच्छी लड़की चाहिए थी जो कि उसके पूरे परिवार का ध्यान रख सके । इसलिए वह गाँव की लड़की से शादी करना चाहता था। उसने चाँदनी को देखा ।बातचीत करने के बाद कबीर ने सरला को पसंद कर लिया। चूंकि कबीर को मनचाही वधू मिल रही थी, अतः, उसने दहेज की कोई बात नहीं की । कबीर की खुशी में ही उसके घरवाले खुश थे।
कबीर सरला से शादी कर उसे शहर ले गया । वहाँ सरला की जिंदगी अच्छे से बीतने लगी । सरला ने वहाँ के नये तौर-तरीके भी अच्छे से सीख लिए तथा अपने माँ एवं भाई की भी मदद किया करती थी।इस तरह सरला की जिंदगी खुशियों से भर गई।
शीख :- ईश्वर के घर देर हो सकती है, परंतु अँधेर नहीं ।
प्रिय पाठकगण कैसी लगी आपको हमारी सरला की शादी कि कहानी।अपनी भावनाओं को हम तक जरूर पहूँचाइए।धन्यवाद आप सभी को।