सरफिरे ख़्वाब
कुछ सरफिरे से ख़्वाब
अपनी तहज़ीब से बाहर
आँखों में बिका करते हैं
रीती सी ख़ामोशी में
हर बार कहा करते हैं ।
उदास धूप तेरे इश्क़ की
रूह को गुनगुनाती है
अलसाई बारिश तेरी याद की
धुँआ-धुँआ कर जाती है ।
कोहरे से परे, वही
पहचाना सा चेहरा
बुझती साँझ का किनारा
वक़्त की हथेलियों में
जमा किया था वो कतरा
उड़ा दिया हवा ने
आलिंगन में लेकर
और समेट दिया मुझको
मुझमें ही
सोच रहा हूँ
कितना ज़रूरी था
किसी का ज़रूरी हो जाना ।