सरपंच और पंच की खोज
*** सरपंच और पंच की खोज ***
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जारी सरपंच और पंच की खोज है,
ग्रामीण की भारी -भरकम फ़ौज हैं।
बंटने लगी खूब शराब की पेटियां,
पीने वाले हुए हैं दारू की मौज हैं।
गली-गली में हो रही चहलकदमी,
बन-बन टोलियाँ निकलती रोज हैं।
कन्नी काटने लगे जिनसे बिगड़ी है,
हाथ-पैर जोड़ मनावन की होड़ हैं।
हाथी दांत दिखाने-खाने के और हैं,
मुख पर सेवा मन मे भरा लोभ है।
चौपाल में बैठ सर्वसम्मति बनाते हैं,
बैठने को तैयार नहीं चुनावी दौड़ है।
हो गए मुंह मोटे बिगड़े है भाईचारे,
घर-घर मे जन चौधर के सिरमौर हैं।
अपनी-अपनी डफ़ली अपना राग है,
कई फुकरों की निकालनी मरोड़ है।
मनसीरत भी चुनावी रंग में रंग गया,
हार-जीत के बिठाता नित्य जोड़ है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)