सरदार
सत्य श्री अकाल पुकारे हरि को,
वाह ए गुरु उदगार।
असरदार अस्तित्व है जिनका,
कौम वही सरदार।
दसों पातशाही की बक्शीश,
चला सिख का पंत।
गुर गोविंद पिता दसमेशा,
जो संतों का सन्त।
पंच ककार पंचप्यारों का,
अमृत घोल पिलाया।
कुल परिवार वार कर अपना,
देश की लाज बचाया।
सृजन ऋणी हे सर्वंशदानी,
रोम रोम आभार।
पंथ खालसा दल सिंहों का,
जगत कहे सरदार।
देग तेग की फ़तह बुलाते,
हुकुम में रहें खरे।
सन्त सिपाही सतगुर के ये,
सेवा भाव भरे।
जग में गुरद्वारा ही केवल,
रोज जहां भंडारा।
कोई कैसा जो भी आता,
लंगर छके अपारा।
अमृतसर गुरुधाम बना है,
सबको रहा बुला।
चार द्वार हैं हरिमन्दिर में,
सबके लिए खुला।
गुरुग्रन्थ साहिब पर श्रद्धा,
ग्रंथ ही इनकी चाबी।
हाथ कड़ा सिर पर पग रखते,
कहलाते पंजाबी।
वीर लड़ाको की सेना है,
जिन पर देश को नाज़।
दुश्मन से भिड़ते है ऐसे,
टूट पड़ें ज्यों बाज़।
नाम जपे हरि कीर्तन गायें,
पूजे इक करतार।
बलिदानी परिपाटी इनकी,
कहलाते सरदार।