सरकार से तक़रार (शिक्षामित्र)
लगाकर जान की बाजी दिखा देंगे सबल अपना,
थें जितने दीखते अब तक नहीं हैं हम सरल उतना।l
अभी हम शान्त बैठे हैं मगर अन्जाम देखोगे,
गुरु संदीपनी देखे हो परशूराम देखोगे।
बग़ावत की चली आंधी तो फिर परिणाम देखोगे,
क्षरण होगा तुम्हारा भाग्य भी होगा नहीं अपना।।
हमारे त्याग को निज स्वार्थ में झुठला दिया तुमने,
परिश्रम को हवाले कोर्ट के निपटा दिया तुमनें।
मग़र अब देखना रण दुन्दुभी हम भी बजाएंगे,
ग़र अपनी राजनीतिक बैर का बदला लिया तुमने।।
हमीं हैं शांति की जो अब तलक कविता पढाएं हैं,
और व्यवहार समता का अभी तक गीत गाये हैं।
मग़र रोटी से बढ़कर और कुछ भी हो नहीं सकता,
करेंगे या मरेंगे अब कफ़न सर बांध आये हैं।।
किसी का मुख निवाला छीनना क्या न्याय होता है,
या फिर इस देश मे ये न्याय का पर्याय होता है।
क्या यू ही राजनैतिक द्वंद्व का हिस्सा बने हम ही,
क्या ये भी राजनीती का बड़ा अभिप्राय होता है।।