सरकार की विफलता
मित्रों एक तरफ जहां हमारे प्रधानमंत्री जी विकासवाद का ढिंढोरा पीट रहें हैं।वहीं दूसरी तरफ आतंकी हमले व अलगाववादी षड़यंत्र रचे जा रहे हैं।जिनमें प्रतिदिन ना जानें कितनी जानें जा रहीं हैं।तो क्या ये विकासवाद उनकी भरपाई कर सकेगा????????
अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले पर मेरी प्रतिक्रिया———
सत्ता की कायरता पर गीदड़ भी खूब चिंघाड़ा है,
हो ना हो उसने तो शेरों के शावक को मारा है।
पहले कोई दुश्मन अपने प्रतिद्वन्दी को तोलता है,
उसके साहस का छोर जान फिर रण का द्वार खोलता है।
और तुमने सारी ज्वालाएं भाषण बाजी में छान दिये,
कथनी को करनी बता बता झूंठ का पुलिंदा बांध दिये।
सावन की पावन बेला पर शिव भक्तों को संहारा है।।……….
हो ना हो उसने तो………….
भाषण बाजी नहीं अगर तुम मौन साधना कर लेते,
संसद के नीतिज्ञों से नीतिगत नीतियां कर लेते।
“अनन्तनाग “क्या सीमा पर भी हमला कभी नहीं होता,
ग़र इक पत्थर के बदले तुम दस बीस शिरों को धर लेते।
यात्री बस पर नहीं तुम्हें गालों पर चाटा मारा है।।……….
हो न हो उसने तो ……….
नहीं समय अब निन्दा की अब भाषण बाजी बन्द करो,
बे खौफ़ पल रहें आतंकी अब उनकी सांसें मन्द करो।
काश्मीर है केंद्र विन्दु हर तरफ नगाड़े बजवा दो,
हर गली -गली हर चप्पों पर दो चार मिसाइल दगवा दो।
फिर कह देना कुछ और नहीं आज़ादी इनको प्यारा है।।………
हो ना हो उसने तो……..
सत्यम् शुक्ल “सत्य”(सिद्धार्थनगर)