सरकारी स्कूल
स्कूल गढ़ते है बच्चें
सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए बच्चे ( छात्र, छात्रा )
अक्षर में ही निरक्षर हैं।
हालत बद से बदतर है
सच्चाई दब ना पाती है।
दबाई हुई सच अकुलाती है।
क्या नया सबेरा होगा।
जब बच्चे पढ़ा ही ना होगा।
मजाक बनाते है ।
सरकारी स्कूल का बच्चा है, क्या पढ़ेगा , क्या लिखेगा ।
सब जानते आज , जनता, सरकार,राज्य I
सब लाचारी का रोना रो रहे हैं।
बच्चों का वर्तमान ही डूबों रहें।
बच्चें ही अमूल्य निधि है ।
बात सच्ची है, अच्छी है।
पर खुद से मुकरना सीख गये है।
नतीजा क्या होगा ,
नासमझो का श्रृंखला खड़ा होगा
जनता, सरकार और राज्य I
सब जानते हुए ढो रहे हैं।
बच्चों का कीमती समय बर्बाद ,
तो देश , राज्य कितना आबाद।
सरकारी स्कूल आबादी को ढो रहे हैं।
सरकारी स्कूल को नवनिर्माण की हैं, जरूरत
अब दयनीय, सोचनीय है हालत
अथक आश में, छोटी सी प्रयास से बढ़ाने की हैं जरूरत।
सरकारी स्कूलों को नव निर्माण की हैं जरूरत। _ डॉ.
सीमा कुमारी, बिहार ( भागलपुर ) दिनांक-9-4-021की स्वरचित कविता है जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं