सरकारी जमाई -व्यंग कविता
रुक गए तीर बाप के ताने के ,
आने लगे रिश्ते घरजमाई बनाने के।
हर तरफ बधाई और वाह वाही है ,
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
मोहाले की लडकियां भी करने लगी गौर ,
चल गया यारों के संग दारू पार्टी का दौर !
पड़ोसन भी अब लगती नहीं पराई है ।
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
साली भी अब जान छिड़कती जाए ,
साला भी अब मुह नहीं बिचकाए ।
सास खिलाये रबडी छैना और रस मलाई है ,
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
बाप का निठल्ला भैरू अब बन गया दुलारा
बहिन की राखी और माँ की आँखों का तारा ।
कभी ना होगी कम रिश्वत की मोटी ये कमाई है ,
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
रचनाकार -डॉ मुकेश’असीमित’