सम्हल के रहना बाबू…
सम्हल के रहना बाबू…
सम्हल के रहना बाबू यहां
यह है अपना देश,
पहचान किसी को नही पाओगे,
क्या है किसका भेष,
कौन है नेता कौन कुनेता,
अलग सभी के टेस,
राजनीत के दौड़ में,
सभी लगाए रेस,
कूटनीति और लालच से,
यहाँ सभी है लेस,
चुनाव वही लड़ता है जिसपर,
तीस चालीस हो केस,
पांव जमाके रखना,
नही तो हो जाओगे डैस,
चुनाव वही जीतेगी भइया,
जो बांटेगी कैस,
कुछ भी करना भइया पर,
न पहुँचना किसी को ठेस,
बाबा हो या बेबी यहां,
सबको पसन्द है बेस,
गरीबों को लूटकर,
अमीर करे है ऐश,
करोड़ो का चूना लगाकर,
छोड़ रहे हैं देश,
लुटेरों और भगोड़ों पर,
नही चले है केस,
फिर भी सब मे भाईचारा,
ऐसा अपना देश,
सबसे सुंदर सबसे न्यारा,
अपना भारत देश,
अपना भारत देश ।।।
– विनय कुमार करुणे