सम्मान
शीर्षक –सम्मान
वह तेजी से हाथों में फाइल और कंधे पर टँगे पर्स को सँभालती चली जा रही थी। बार -बार बैचेनी से उसकी नज़रें आगे-पीछे भी घूम रहीं थीं कि शायद कोई रिक्शा ,ऑटो रिक्शा मिल जाए। पर जिस दिन घर से निकलने में देर होती है उस दिन कोई वाहन तक नहीं मिलता और स्कूल के प्रिंसिपल से कड़वी बातें सुननी पड़ती थी।घर में सुबह का नाश्ता ,पतिदेव के लिए दोपहर का भोजनबना कर रखने के साथ साफ सफाई व अन्य काम भी करते करते पाँच -सात मिनिट लेट हो ही जाती थी।
और आज तो गणतंत्र दिवस भी था। वह हड़बड़ाती सी स्कूल के पास तक पहुँची ही थी कि एक बच्चे की तेजी से आती साइकिल से टकरा कर गिर गयी।
“सॉरी मेम, आपको चोट तो नहीं आई?”बच्चे ने साइकिल छोड़ उसे सँभाला।
उसने देखा बच्चे की जेब में तिरंगा रखा था जिसे गिरने से बचाते हुये एक हाथ से सँभाला हुआ था।
बच्चे की आँखों में अपराध बोध था।
उसके बढ़े हुये हाथ को पकड़ उठते हुये हल्की सी मुस्कुराहट होठों पर आई । बच्चे के बालों को सहलाते बोली “जिस बच्चे के मन में ध्वज के प्रति सम्मान और चेहरे पर ईमानदारी हो वह गलत हो ही नहीं सकता।”
इस समय वह प्रिसिंपल की डाँट को भी भूल चुकी थी।
मिहिरा_पाखी