सम्मान दो और सम्मान पाओ …
देवी मैं तब बनूंगी ,
जब तुम देवता बनकर दिखलाओ ।
चरणस्पर्श भी करूंगी प्रतिदिन,
पहले तुम महान बनकर दिखलाओ ।
ईश्वर भी तुम्हें तभी मानूंगी अपना ,
जब तुम ईश्वर की भांति मेरा पालन और सरंक्षण करो।
निस्वार्थ और पवित्र मन से ।
तुम पहले इस लायक तो बनो ,
की मैं तुम्हें अत्यधिक सम्मान दे सकूं।
तुमको मुझमें यदि सारे गुणों की अपेक्षा है ,
तो मुझे भी कम नहीं।
तुम मुझमें देखना चाहते हो सारी भूमिकाएं,
पत्नी ,दासी ,प्रेयसी ,कभी मां ,कभी बेटी ,जीवनसाथी ,
इत्यादि ।
तो मुझे भी चाहिए तुममें सारी भूमिकाएं,
जैसे पति ,मित्र ,पुत्र , दास ,प्रेमी ,पिता,जीवनसाथी ,
हमराज इत्यादि ।
यदि तुम्हें मुझसे ढेर सारी अपेक्षाएं ,आशाएं है ,
तो मुझे भी है तुमसे उतनी ही आशाएं और अपेक्षाएं।
यदि मुझे तुम्हारे विश्वास पर खरे उतरना आवश्यक है ,
तो तुम्हें भी मेरे विश्वास पर खरे उतरना होगा ।
यूं ही आंखें मूंद कर मैं तुम पर विश्वास नहीं करूंगी ।
मैं आज की २१वीं सदी नारी हूं कोई सीता नही ,
जो तुम्हें अग्नि परीक्षा दूंगी ।
बल्कि मैं तुमसे भी मांगूंगी ।
यूं ही तुम्हें सर का ताज बनाकर तुम्हारी पूजा नही करूंगी ।
तुम भी पहले पूजा के काबिल तो बनो।
तुम मुझसे यदि अत्यधिक सम्मान की अभिलाषा है ,
तो सर्वप्रथम तुम्हें मेरी सारी अभिलाषाएं पूर्ण करनी होगी।
तुम्हें मुझे भी अत्यधिक सम्मान देना होगा ।
इस संसार की रीत है यही ,
और हमारे जीवन का सिद्धांत ,
सम्मान दो और सम्मान पाओ ।