समुद्र की सीख
मैं समुद्र हूँ ..विशाल हृदर मन में बसाए।
शांत लहरों के भाति व्यहवारिकता लिए गमन करता हूँ।।
धाराओ के कूल-प्रतिकूल ।
परिस्थितियों से बाध्य हूँ।।
शीतल जल से सिंचित कर रहा हूँ ।
पर्वतों की ऊंचाइयों पे चढ़ता रहता हूँ।।
समुद्र कैसे बना ये नदियों से सीखा ।
मनुष्य केसे बना ये इन्सानियत से सीखा।।
समुंद्र की गहराइयों में जा कर देख रहा हूँ।
मन की तन्हाइयों में जा कर सफर कर रहा हूँ।।
तमना है समुंद्र तैर कर पार करने की ।
प्रयत्न है लहरें डुबोने के साथ ही।।
लहरे क्या बिगाड़ सकते है सफर पे।
जहाँ लगन ए सँघर्षरत हूँ पथ -प्रदर्शन मे ।।
मैं समुद्र हूँ……….।।
पंक्तियां-प्रकाश राम