समा गयी है तू मेरे भीतर
समा गयी है तू मेरे भीतर जिस तरह
नदी का पानी समा जाता है समुन्द्र के अंदर
समा गयी है तू इस कदर मेरे अंदर जिस तरह
समा जाता है बारिश का पानी धरा के अंदर
घुल गयी है चीनी के माफिक जैसे
चाय में घुल गयी हो तेरी मिठास
समा गयी है तू मेरे भीतर जिस
तरह समा गया है जग में सारा आकाश
समा गयी है तू मेरे भीतर जैसे
शरीर मिटकर मिटटी में बन जाता है राख
समा गयी हा तू मेरे अंदर जैसे
दब जाता है कोई राज़
समा गयी है तू मेरे अंदर जैसे
धरती, वायु, अग्नि , जल, आकाश
समा गयी है तू मेरे अंदर जैसे
अब तू ही मेरे जीने का साज
समा गयी है तू मेरे भीतर जैसे
अंधरे में प्रकाश
समा गयी है तू मेरे भीतर जैसे
इस जहां में दिन और रात
समा गयी ही तू मेरे भीतर जैसे
हवा में महके फूलों की बास
समा गई है तू मेरे जीवन में ऐसे
तू ही है अब मेरे जीने का सार
भूपेंद्र रावत
11/09/2017