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31 May 2024 · 1 min read

समाज

समाज

पानी सा तैरता जीवन
धपाक छपाक फिर निशब्दता
निशब्दता से उपजता कोलाहल
कोलाहल में सन्नाटा
सन्नाटों से उपजता शोर
शोर से हो जाता भयावह माहौल
माहौल को और गंभीर बना देता अंतःकरण का आर्तनाद
आर्तनाद कों अब सुनने वाला कोई नहीं
नहीं नहीं अब और नहीं कहने वाला है कोई
कोई शेष लगता बचा नहीं, मरघट सा जीवन लगे सही
सही ग़लत का भेद नहीं, अपने को माने सही सभी।
सभी ने की सभा ज़बरदस्त
ज़बरदस्त का भी निकलने लगा है दम
दम की तो कोई बात नहीं, अपने को कमतर अब आंकता नहीं कोई ।
कोई कोई है अब भी अच्छा, जो कर सकता है समाप्त बुराई,
बुराइयों से ही पनपता व्यभिचार है
इसे ख़त्म करने में ही सबका कल्याण है।

डॉ. अर्चना मिश्रा
दिल्ली

Language: Hindi
1 Like · 54 Views

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