समाज
समाज के दोहरेपन का आज भी शिकार है।
प्रेम,मानव – मानवी आज भी सिर्फ विचार हैं ।
व्यक्तित्व के दोहरेपन को वाचता
मौन की तु साधना साधता
आधुनिक समाज हो या तेरा पुराना इतिहास हो,
द्रौपदी का चीरहरण हो या सीता का वनवास
तु मौन की साधना – साधता
विचित्र है तेरी क्रूरता
_ डॉ. सीमा कुमारी , बिहार (भागलपुर)। मेरी स्वरचित रचना 25-4-018 की है जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ l