समाज के ठेकेदार
चूर चूर कर डाले रिश्ते
समाज के ठेकेदारों ने
खुद के दोष रहे छिपाए
लगे औरों को उछलाने में
भावहीन भयमुक्त हो गए
लगे औरों को धमकाने में
छोटों को तहबीज रही नहीं
लगे बड़ों को अपमाने में
पढे लिखे मूर्ख बन गए लगे
कढे हुओं को समझाने म़े
दुख सुख म़े जो जुड़ते थे
लगे उनको तुड़वाने में
साक्षरों से अनपढ़ अच्छा
जो समझे बात अन्जाने में
कबीले नेता वो अच्छे थे
रखते थे बात जुड़ाने में
आज समाज प्रधान को देखो
रखते विशवास तुड़ाने म़े
अहम का सर नीचा होता है
समझो बात को सयाने में
किसी का बेहतर खर न सको
तो बचो बुराई कमाने में
भाई बहनों को अलग कर दिया
कमाया पाप नौजवानों नें
दुखी आत्मा माफ नहीं करेगी
मिलेगा फल इसी जमाने में
झूठ फरेब का उढावन पहने
लग गए हैं सच को छुपाने में
समय है अब भी सुधर जाओ
नहीं तो लग जाओगे पछताने में
झूठी शान दिखाने वालो
लगो सच को जताने में
खुद् के गरिबान में झाकों तो
दिख जाएगा सच आइने में
सुखविंद्र सिंह मनसीरत