*समाज और अस्तित्व का मूल है बेटी !
*किसी युगल को सिर्फ बेटियां पैदा
हो रही हो अगर,
अकेले औरत नहीं है.. जिम्मेदार !
जाने कब होंगे ..लोग समझदार ?
शादी से पहले ही पढ़ लेना ये पाठ जरूर,
बेटियां पैदा नहीं होती अगर !
कैसे बढ़ पाता आपका घर-परिवार ?
करती है हर बेटी कुल का उद्धार,
प्रकृति है जननी है बेटी तेरा ओर न छोर,
सबकी नजरें है तेरी ओर,
हुआ क्यों ? फिर ऐसा !
जो जाँच शुरू हुई गर्भ में ही बेटी है ! के बेटा !
बेटी फूल है काँटा समझ लिया,
हर चेहरे की मुस्कान है बेटी..भार समझ लिया,
आँखों का तारा है बेटी …सुनसान समझ लिया,
हर घर में गूँजते स्वर है बेटी !
हर रस्म-रिवाज का मूल है बेटी !
फिर क्यों ?
फिर क्यों व्यर्थ ही बदनाम है बेटी !
माँ का सार्थक आँगन,
और आँचल है बेटी !
इस समाज और अस्तित्व का मूल है बेटी!
***समाज और अस्तित्व का मूल है बेटी!
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
रेवाड़ी(हरियाणा).