समाजवाद
कविता
समाजवाद
*अनिल शूर आज़ाद
बरसों पहले
यहां एक/कामरेड आता था
हमेशा वह/ यही कहता था
समाजवाद आएगा
शोषण-चक्र टूटेगा
सबके चेहरों पर/मुस्कान होगी
मां भारती तब खुशहाल होगी
इस बात को/ अर्सा हो गया है
समाजवाद/अभी नही आया है
कामरेड भी/ जाने कहां गया है
हां..कभी-कभार
कुछ टोपी वाले
कह उठते हैं
समाजवाद आएगा
तब हंसते हैं/लोग उन पर
(लेकिन..भीतर कहीं
रोते हैं सबके सब! )
अच्छा..तुम ही कहो दोस्त..
क्या समाजवाद कभी आएगा?
(रचनाकाल : वर्ष 1983)