***समस्त शक्ति वरदायिनी ; माँ दुर्गा
।। समस्त शक्ति वरदायिनी ; माँ दुर्गा जी ।।
*शक्ति का आशय उस सत्ता से है जो सृष्टि की उत्तपत्ति तथा संहारकर्ता का मूल रूप है।
ब्रम्हा की शक्ति के माध्यम से ही सृष्टि की रचना की गई है किसी भी कार्यों की उत्पत्ति पोषण ,सरंक्षण व संहार हेतु देवियों का आधार माना गया है इनमें महालक्ष्मी , महाकाली , महासरस्वती जी सभी को दिव्य शक्ति का प्रतीक माना गया है।
समस्त शक्तियों का स्वरूप माँ दुर्गा जी में समाया हुआ है किसी भी कष्ट या कार्यों को सम्पन्न करने के लिए देवियों का स्मरण मात्र कर लेने से ही कार्य सिद्ध हो जाते हैं अनेक शक्तियों का समर्थन से ही माँ दुर्गा का अवतार हुआ है।
संसार की समस्त शक्तियों को अपने में समेटे हुए जग पालन हेतु सभी व्यक्तियों को सुख समृद्धि ,धन लाभ प्रदान करती है।
योगीजन भी देवी शक्ति की कृपा के बिना कोई कार्य सिद्ध नही कर पाते हैं उनकी गुणों का बखान समस्त संसार भी किया करते हैं।
जीवन का अंत मुठ्ठी भर भस्म के रूप में ही शेष रह जाता है फिर क्यों न शेष समय देवी की आराधना करते हुए उनकी शक्तियों को प्रेरणा स्वरूप आदर्श मानकर भक्ति में समाहित कर जीवन को सार्थक करना चाहिए।
माँ दुर्गा जी की शक्ति की महिमा अपरम्पार है इन शक्तियों की प्रेरणा का प्रभाव नवरात्रि पर्वो में उल्लास व उमंगों से भर देता है साथ ही जीवन ज्योति जलाकर आलोकित कर दीये की लौ की तरह से प्रज्वलित करता है ।
समुद्री तूफानों की तरह हिलोरें मारते हुए अंर्तमन को जागृत कर दिव्य शक्तियों का प्रभाव हमारे आत्मिक मन को शांतचित्त व प्रसन्न कर देता है और शरीर भी आत्मविभोर हो उठता है।
स्वरचित मौलिक रचना
।। जय माता दी ।।
*** शशिकला व्यास ***
#* मध्यप्रदेश भोपाल *#