समलैंगिकता-एक मनोविकार
समलैंगिकता-एक मनोविकार
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लैंगिक असमानता से व्याकुल हैं हम आज ,
बदला है परिवेश,कितना पीड़ित है ये समाज।
पहचान मिटा देंगे हम लिंगों की ,
करेंगे अब हम समानता का आगाज।
नर नारी नाम का जीव अब ,
रह जायेगा न इस धरती पर ।
सभ्यता का दामन भी अब हम छोड़ देंगे ,
देखो ना तुम, हम कितने पढ़े लिखे हैं आज।
अभिज्ञानशाकुन्तलम् का प्रेम विरह गाथा ,
अब ना कोई कालिदास सा कह पायेगा।
ना तो कोई अब दुष्यंत बनेगा ,
ना ही शकुन्तला का पुनर्मिलन हो पायेगा।
प्रेम सौंदर्य में सिर्फ समलैंगिकता को ,
फुरसत से तराशा जायेगा।
गरुड़ पुराण जो कहता विधान में ,
शापित होंगे हर नर, अब नारी से।
बचेगा ना कोई नर जब दण्डित होकर ,
अगले जन्म सब चकवा बन जाएगा।
रात विरह में चकवा चकई सिर्फ ,
इस पृथ्वी पर मंडरायेगा ।
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २३ /०४ /२०२३
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विक्रम संवत २०८०
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