” समर्पण “
” समर्पण ”
( डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ” )
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मैं आपकी आरती
उतारूँगी ,
फूलों से घर को
सजाऊँगी !
आ जाएँ घर एक बार सजन ,
मैं दिनभर यूँही
नाचूँगी !!
नज़रों से आपको
निहारूँगी ,
शीतल हवा के झोकों को
अपने आँचल से
बुलाऊँगी !!
दीपों से उजाला
लाऊँगी ,
फूलों से सेज
सजाउँगी !
चन्दन की खुसबू से घर को
सबदिन इसको
महकाऊँगी !!
भूले बिसरे क्षण को
बताऊँगी ,
दर्द बिरह का आपको
सुनाऊँगी !
आप नहीं अब जाना दूर
बरना मैं नहीं रह
पाऊँगी !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
दुमका