@@@. समर्पण @@@
***************{ समर्पण }************
नाजों से थी पली सारे घर की मैं लाडली
छोड़ आई सब कुछ सजाने तुम्हारा जीवन
कर दिया सारा जीवन मैंने तुम पर अर्पण
पर तुम्हें रास आया नहीं क्यों मेरा समर्पण
मायका संगी साथी वो प्यारा सा बचपन
छोड़ आई तूम्हारे लिए बाबुल का आंगन
कर दिया सारा जीवन मैंने तुम पर अर्पण
पर तुम्हें रास आया नहीं क्यों मेरा समर्पण
किया जो कहा तुमने कहा जो किया सहन
खुद को देखा तुममें तो कभी देखा न दर्पण
कर दिया सारा जीवन मैंने तुम पर अर्पण
पर तुम्हें रास आया नहीं क्यों मेरा समर्पण
भूल अपना अस्तित्व कभी सोचा न गहन
तुम पर कर के भरोसा सौंप दिया तन मन
कर दिया सारा जीवन मैंने तुम पर अर्पण
पर तुम्हें रास आया नहीं क्यों मेरा समर्पण
कोख में तुम्हारा अंश नौ माह किया वहन
सुख दुःख में हर पल किया कर्तव्य निर्वहन
कर दिया सारा जीवन मैंने तुम पर अर्पण
पर तुम्हें रास आया नहीं क्यों मेरा समर्पण
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© गौतम जैन ®