समरसता का ताना बुनकर लोगों को बहकाते है ं
विषय: समरसता/एकता
किसान आन्दोलन के संदर्भ में देखें एक नवगीत ???
समरसता का ताना बुनकर,लोगों को बहकाते हैं।
बने हिमायती हैं उनके वो,छल का पाठ पढ़ाते हैं।।
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ठगे जा रहे छल के हाथों
सीधे सच्चे और सरल ।
वही पिया जो उन्हें पिलाया
नहीं समझते मधुर गरल।।
सत्तर साल पढ़ाया था जो,अब भी वही पढ़ाते हैं।
समरसता का ताना बुनकर,लोगों को बहकाते हैं।।
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दांव पेंच से सदा अछूता
खेती को करने वाला।
राजनीति की कूटनीति को
ना समुझे भोला-भाला।।
भोले भाले से किसान को,छल से ये भरमाते हैं।
समरसता का ताना बुनकर,लोगों को बहकाते हैं।।
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चिंता नाहि उन्हें उनकी है,
अपना उल्लू सीधा हो।
मर जाये भूखा हलधर भी,
अपना मकसद पूरा हो।।
नित झूठी अफवाह फैलाकर,सबको वो भड़काते हैं।
समरसता का ताना बुनकर,लोगों को बहकाते हैं।।
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