“समय है अपराजित”
अधीर हो अगर तुम ;
व्याकुल हाँ चित्त है,
धीरज धरो हाँ जो कहता हृदय है,
ठहरो जरा तुम हाँ ठहरो जरा तुम !
आया नहीं हाँ अभी तेरा वक्त है।
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साहिल क्युं हाँ; ढुंढेगा कश्ती
तय है जब उसका किनारे पे आना,
रोको कदम तुम थोड़ा सा ठहरो !
नहीं फर्क उनको जमाने का पड़ता,
कर्म जिनका हैं हाँ दुआओं में बसता,
चिता भी जले जो नमन उनको मिलता,
जिंदा रहे तो प्रेम है खिलता,
समय है अपराजित,
जो लक्ष्य में हो हाँ तुम !
तय उसकी धारा………..में निश्चल बहो तुम !
©दामिनी