समय मुसाफिर
समय मुसाफिर अपनी गति से चलता जाता है,
नहीं ठहरता पलभर निरन्तर बढ़ता जाता है।
जो नहीं चल पाता साथ समय के,
पीछे रह जाता है।
हो जाता है कालातीत,
अपयश जग में पाता है।
गया वक्त नहीं आता लौटकर,
समय निकल जाने पर पछताता है।
समय मुसाफिर……..।
समय नहीं करता किसी का इन्तजार,
कम नहीं करता अपनी रफ्तार।
नहीं किसी से करता नफरत,
नहीं किसी से अतिशय प्यार।
नहीं किसी को गले लगाता,
नहीं किसी को ठुकराता है।
समय मुसाफिर……….।
वक्त की है हर शै गुलाम,
अच्छे वक्त में ही इन्सान पाता है मुकाम।
बुरे समय में गिर जाते हैं सब,
नहीं कोई चतुराई आती है काम।
जो जानता है नब्ज वक्त की,
वही खड़ा रह पाता है।
समय मुसाफिर……….. ।
चाल समय की तुम जानो,
नहीं उसे अपना मानो।
दूर दृष्टि अपनाओ तुम,
अनुकूलता समय की पहचानो।
समय की चाल समझने वाला ही,
लाभ समय का ले पाता है।
समय मुसाफिर……….. ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा